Thursday, December 3, 2009

"दो बूंद " गंगा जल

" अविरल और निर्मल गंगा "
आज सबसे बड़ी समस्या है प्राकृतिक ,सांस्कृतिक और मानसिक प्रदूषण ! इसका ज्वलंत उदहारण है "प्रदूषित गंगा" और इसकी चिंता सबको है . " अविरल और निर्मल गंगा " के सत् संकल्प के साथ माँ गंगा के आँचल में समाई हुई सभ्यता के संरक्षण और संस्कृति के सवंर्धन के लिए देश में अनेक महानुभाव व्यक्तिगत अथवा संस्थागत स्तर पर कार्य तथा आन्दोलन कर रहें है और देश में पर्यावरण - प्रदूषण एवं नदी प्रदूषण दूर करने से लेकर नदियों को बचाने के लिए स्वयंसिद्ध अनवरत प्रयासों में लगे हुवे है. तो सरकारें करोडों रुपये की लागत से प्रदूषण मुक्त गंगा का सब्जबाग दिखा रही है पर पतितपावनी मोक्षदायिनी माँ गंगा है की साफ होती ही नहीं .
यह बड़े दुःख का विषय है क्योंकि गंगा केवल नदी नहीं जो गोमुख से निकली और गहरे सागर में जा गिरी . गंगा स्वयं एक संस्कृति है यह प्रत्येक हिन्दू के मन-मस्तिस्क में अविरल तरंगित होती है ,मेरा कोई भी संस्कार उसके बिना पूरा नहीं होता ! गंगा के किनारों से कोसों दूर मानसी गंगा या एम्.सी.डी. के पानी में "दो बूंद " गंगा जल मुझे वैसे ही शुद्ध करता है जैसे राष्ट्र को पोलियो मुक्त करती "दो बूंद " पोलियो की दवा.पर आज वह "दो बूंद " गंगा जल भी गोमुख से निकलकर टिहरी में केद होगया है ! परायों से लड़कर किये समझोते को हमारे अपनों ने ही तोड़ डाला , हमारे सत्ताकेंद्रों की ओछी मानसिकता के आगे हमारी दिव्य सनातन संस्कृति हमेशा ही छोटी साबित हुई है क्योंकि हमने प्रतीकात्मक विरोध तो सदैव किया पर सकारात्मक प्रयास कभी नहीं !
हमारे आस्था केन्द्रों को हमने पर्यटन स्थल बना दिए तो सरकारों और स्थानीय लोगों ने चंद पैसों की खातिर विदेशी अपसंस्कृति को दूषण की खुली छुट दे दी. सेलानिओं के सेर-सपाटे में आस्था-विशवास से दूर मोज मस्ती के आलम से समस्याए तो बढ़नी ही थी , सवाल है की क्या अब कुछ नहीं हो सकता जिससे माँ गंगा की अविरल और निर्मल धारा अबाध गत्ति से बहती रहे ? एक कहावत हमारी मदद कर सकती है -
मन चंगा तो कठोती में गंगा"
चाहे कभी उपहास में ही कहा गया हो पर आज सटीक है , मेरे आसपास के हर नदी-नाले-झरने, शहर के झील-तालाब और गाँव के जोहड़ या पशुओं के पानी पीने की खेली तक में पवित्र गंगा के दर्शन कर यदि इन्हें बचाने का प्रयास करूँगा तो विकास और नदियों के साझा सवाल पर कार्य कर रहे लोगों को यह बोध होगा की मात्र वे ही नहीं है , समाज में और भी लोग है , और भी धाराएँ है जो इस दिशा में कार्य कर रहे है और जब समान और पवित्र उद्देश्य के लिए लोग जागरूक होतें है तो असीम संभावनाएं जन्म लेती है और उन संभावनाओं से उपजी साझा समझ से कार्य करते हुए परिणाम मूलक - एकीकृत प्रयास से माँ गंगा की अविरल एवं निर्मल धारा अबाध गति से बहती रहे..........
तो आइये इसी आशा और सदविश्वाशके साथ प्रदूषण मुक्त जल संरक्षण और संवर्धन के सत् संकल्प के लिए हम भी करें एक सार्थक प्रयास. हर-हर गंगे , जय माँ गंगे
रामकृष्ण सेवदा

Tuesday, December 1, 2009

पतित पावनी की सुनो पुकार


प्रकृति एवं संस्कृति के प्रति
जागरूकता
: संरक्षण : संवर्धन

के लिए
"
कलियुग संजीवनी "
की
एक नई पहल : सार्थक प्रयास

अविरल और निर्मल गंगा